अतिरिक्त >> चालाकी का बदला चालाकी का बदलाआचार्य चतुरसेन
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प्रस्तुत है आचार्य चतुरसेन की कहानी चालाकी का बदला ...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
संतोषी भोला
किसी शहर में एक सेठ रहता था। उसके पास बहुत-सा धन था- पर वह बड़ा ही
कंजूस था। उसके यहाँ एक नौकर था जिसका नाम भोलानाथ था। भोलानाथ बड़ा ही
सीधा और मेहनती था। ईमानदार भी वह उतना ही था। उसने तीन साल तक सेठ की
सेवा रात-दिन की- फिर भी सेठ ने उसे एक पैसा भी तनख्वाह नहीं दी।
एक दिन उसने सेठ से कहा- सेठ जी, मुझे आपकी नौकरी करते हुए तीन साल हो गए- अब आप मुझें छुट्टी दे तो मैं घर हो आऊँ।
सेठ जी ने कहा- अच्छा भाई, तुम जाना ही चाहते हो तो चले जाओ ।
भोलानाथ ने कहा- तो आप जो कुछ ठीक समझें मुझे तनख्याह दे दें।
सेठ ने कहा- भाई, तनख्वाह क्या दूँ- तुम कितना खाते थे- उसके दाम जोड़े जाएँ तो पता नहीं कितने रुपये जुड़ें। पर खैर, फिर भी मैं तुम्हें तीन पैसे देता हूँ। इससे अधिक देना तो मेरे बूते से बाहर की बात है।
इतना कहकर उसने तीन पैसे भोला के हाथ पर धर दिए।
भोला सन्तोषी भी पूरा था- उसने चुपचाप तीन पैसे ले लिए और राजी-खुशी सेठ से विदा लेकर अपने घर की ओर चल दिया।
चलते-चलते जंगल में उसे एक महात्मा मिले। महात्मा ने उसे हँसते-गाते जाता देखा तो पूछा- भाई, तुम बहुत खुश मालूम होते हो। कहो, कहाँ से आ रहे हो और कहाँ जा रहे हो ?
एक दिन उसने सेठ से कहा- सेठ जी, मुझे आपकी नौकरी करते हुए तीन साल हो गए- अब आप मुझें छुट्टी दे तो मैं घर हो आऊँ।
सेठ जी ने कहा- अच्छा भाई, तुम जाना ही चाहते हो तो चले जाओ ।
भोलानाथ ने कहा- तो आप जो कुछ ठीक समझें मुझे तनख्याह दे दें।
सेठ ने कहा- भाई, तनख्वाह क्या दूँ- तुम कितना खाते थे- उसके दाम जोड़े जाएँ तो पता नहीं कितने रुपये जुड़ें। पर खैर, फिर भी मैं तुम्हें तीन पैसे देता हूँ। इससे अधिक देना तो मेरे बूते से बाहर की बात है।
इतना कहकर उसने तीन पैसे भोला के हाथ पर धर दिए।
भोला सन्तोषी भी पूरा था- उसने चुपचाप तीन पैसे ले लिए और राजी-खुशी सेठ से विदा लेकर अपने घर की ओर चल दिया।
चलते-चलते जंगल में उसे एक महात्मा मिले। महात्मा ने उसे हँसते-गाते जाता देखा तो पूछा- भाई, तुम बहुत खुश मालूम होते हो। कहो, कहाँ से आ रहे हो और कहाँ जा रहे हो ?
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